ग़ज़ल
बहरे-कामिल मुसम्मन सालिम मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन ग़ज़ल वो जो घर था, तुम से ही था वो घर, तुम्हें याद हो कि न याद हो तुम्हें ढूंढती रही हर नज़र,…
read moreबहरे-कामिल मुसम्मन सालिम मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन ग़ज़ल वो जो घर था, तुम से ही था वो घर, तुम्हें याद हो कि न याद हो तुम्हें ढूंढती रही हर नज़र,…
read moreमैं अपने होंठों की ताज़गी को तुम्हारे होंटों के नाम लिख दूँ हिना से रोशन हथेलियों पर नज़र के दिलकश पयाम लिख दूँ अगर इजाज़त हो जाने-मन तो किताबे-दिल…
read moreइस दौर के भारत का अंदाज़ अनूठा है अब रिश्ता अदालत का इंसाफ़ से टूटा है जो बात नहीं शामिल क़ानूनी मसौदे में उस पर ही सियासत ने इस…
read moreज़िन्दगी में मेरी ताज़गी आ गयी दूर अँधेरा हुआ, रौशनी आ गयी जब कोरोना की सूई भली आ गयी देश में फिर नयी ज़िन्दगी आ गयी माह मौसम…
read moreरिश्ते निभाएं कैसे दिलों में है बरहमी मय्यत निहारने की इजाज़त नहीं मिली मरघट सी खामुशी है हर इक शहर में अभी बाहर वबा का खौफ़ है कमरों में…
read moreदाल रोटी और दवाई के सिवा क्या चाहिए लॉक डाउन में मेरे भाई भला क्या चाहिए शर्ट टाई पैंट पहने कोई अब फ़ुर्सत कहाँ अब नहाना खाना सोना है…
read moreबेटी पर सख्ती, बेटे को मस्ती के अधिकार मिले नगर नगर कस्बों गाँवों को सीख में ये उपहार मिले बालिग़ नाबालिग़ सब वहशी, तल्बा ज़ुल्म के मकतब के औरत…
read moreतुम्हारे लफ़्ज़ों को भावनाओं की पालकी में बिठा रहा हूँ दिले- हज़ीं में मची है हलचल मैं आँसुओं को छुपा रहा हूँ तुम्हारी पलकें झुकी हुई हैं तुम्हारे लब…
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