• May 20, 2021

ग़ज़ल

ग़ज़ल

ग़ज़ल 150 150 Ramesh Kamal

ज़िन्दगी में मेरी ताज़गी आ गयी

दूर अँधेरा हुआ, रौशनी आ गयी

 

जब कोरोना की सूई भली आ गयी                                                                                                                      देश में फिर नयी ज़िन्दगी आ गयी  

 

माह मौसम कलेंडर बदलते रहे

जब दिसम्बर गया जनवरी आ गयी

 

आप दाखिल हुए ज़िन्दगी में मेरी

हर तरफ़ सहने-दिल में ख़ुशी आ गयी

 

ज़िद की चादर,अना की रिदा ओढ़कर

ठण्ड में भीड़ की बेबसी आ गयी

 

पेड़ काटे, पहाड़ों का सौदा किया

क़ुदरती क़हर पर बरहमी आ गयी  

 

चाँद से गुफ़्तगू प्यार की हो सके

सोच कर बाग़ में चाँदनी आ गयी

 

ख़ुशबुओं के चमन फिर सँवरने लगे

सहने-गुलशन में फिर ताज़गी आ गयी

 

रात दिन चैन से मेरे कटने लगे

ज़िन्दगी में ‘कँवल’ वो ख़ुशी आ गयी