अमृत महोत्सव की ग़ज़लें
75 रदीफ़ों में ताबिंदा ग़ज़लों का सम्पादन – रमेश ‘कँवल स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष को अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है | विकसित भारत ,गुलामी के…
read more75 रदीफ़ों में ताबिंदा ग़ज़लों का सम्पादन – रमेश ‘कँवल स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष को अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है | विकसित भारत ,गुलामी के…
read moreफ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ैलुन छोड़ कर चल गयीं जहाँ फ़ानी गीत संगीत की महारानी आप मलिका थीं ताल सुर लय की आपके दम से थी ग़ज़ल ख्वानी वो भजन हो कि…
read moreमफ़ऊलु मुफ़ाईलु मुफ़ाईलु फ़ऊलुन ठुकराओगे तो सोच लो पछताओगे बेशक पत्थर हूँ शिवालों में मुझे पाओगे बेशक उम्मीद की दुल्हन हूँ निगाहों में बसा लो मंज़िल पे मेरे साथ पहुँच…
read moreमसअला मुल्क का हल हो ये कहाँ मुमकिन है घर ग़रीबों का महल हो ये कहाँ मुमकिन है शोख़ अदाओं का न छल हो ये कहाँ मुमकिन है उनके…
read moreरिश्ते निभाएं कैसे दिलों में है बरहमी मय्यत निहारने की इजाज़त नहीं मिली मरघट सी खामुशी है हर इक शहर में अभी बाहर वबा का खौफ़ है कमरों में…
read moreमजदूरों के लिए कोई लारी न आएगी बस रेल जैसी कोई सवारी न आएगी कुछ फ़ासला हो, हाथ मिलाएं नहीं कभी कोरोना जैसी कोई बीमारी न आएगी शमसान…
read moreकरोना ने जमकर मचायी तबाही इलाही, इलाही, इलाही, इलाही सभी को है फ़ुर्सत मिलन पे मनाही है बेचैन मन बंद है आवाजाही मिली महफ़िलों में उसे वाहवाही तरन्नुम…
read moreउजाले बांटने फिर चल पड़े हैं हमारे दर पे नाबीना खड़े हैं ये परदे रेशमी तो हैं यक़ीनन मेरे सपनों के इन में चीथड़े हैं हवाए-ताज़गी ले आयेंगे…
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