मैं अपने होंठों की ताज़गी को तुम्हारे होंटों के नाम लिख दूँ
हिना से रोशन हथेलियों पर नज़र के दिलकश पयाम लिख दूँ
अगर इजाज़त हो जाने-मन तो किताबे-दिल के हर इक वरक़ पर
मैं सुबहे-काशी की रौशनी में अवध की मस्तानी शाम लिख दूँ
बदन पे सावन की है इबारत, नज़र में दोनों की एक चाहत
मिरे लबों को जो हो इजाज़त, वफ़ा का पहला सलाम लिख दूँ
जो दिलनशीं है सितम पे माइल उसे हर इक पल दुआएँ दूँ मैं
सुलगते सूरज से दूर रखकर अमन सुकूं का क़याम लिख दूँ
मसर्रतों पे ग्रहण प्रदूषण अवामी खुशियाँ बिलख रही हैं
तुम्हीं बताओ ऐ मेरे रहबर कहाँ से बेहतर निज़ाम लिख दूँ
डिलीट कर दूँगा उसके ग़म को मैं दिल के अब लैप टॉप से ही
ख़ुशी के जितने मिले हैं DATA उन्हें मैं दिलबर के नाम लिख दूँ
मुक़द्दमा जो चला बहुत दिन लो आ गया उसका फ़ैसला भी
‘कँवल’ मैं चाहूँ गले लगाकर अदू के दिल में भी राम लिख दूँ
रमेश कँवल
सृजन 5 नवम्बर,2019
अदबी महाज़,कटक ,अक्टूबर से दिसम्बर 2020 अंक के पृष्ठ 44 पर प्रकाशित
2020 की नुमाइंदा ग़ज़लें, एनीबुक प्रकाशन के पृष्ठ 248 पर प्रकाशित
30 ग़ज़लगो : 300 ग़ज़लें , एनीबुक प्रकाशन के पृष्ठ 127 पर प्रकाशित