• May 20, 2021

ग़ज़ल : रमेश कँवल

ग़ज़ल : रमेश कँवल

ग़ज़ल : रमेश कँवल 150 150 Ramesh Kamal

मैं अपने होंठों की ताज़गी को तुम्हारे होंटों के नाम लिख दूँ

हिना से  रोशन हथेलियों पर नज़र के दिलकश पयाम लिख दूँ

 

अगर इजाज़त हो जाने-मन तो किताबे-दिल के हर इक वरक़ पर

मैं सुबहे-काशी की रौशनी में अवध की मस्तानी शाम लिख दूँ

 

बदन पे सावन की है इबारत, नज़र में दोनों की एक चाहत

मिरे लबों को जो हो इजाज़त, वफ़ा का पहला सलाम लिख दूँ

 

जो दिलनशीं है सितम पे माइल उसे हर इक पल दुआएँ दूँ मैं

सुलगते सूरज से दूर रखकर अमन सुकूं का क़याम लिख दूँ

 

मसर्रतों पे ग्रहण प्रदूषण अवामी खुशियाँ बिलख रही  हैं

तुम्हीं बताओ ऐ मेरे रहबर कहाँ से बेहतर निज़ाम लिख दूँ

 

डिलीट कर दूँगा उसके ग़म को मैं दिल के अब लैप टॉप से ही

ख़ुशी के जितने मिले हैं DATA उन्हें मैं दिलबर के नाम लिख दूँ

 

                        मुक़द्दमा जो चला बहुत दिन लो आ गया उसका  फ़ैसला भी

कँवल मैं चाहूँ गले लगाकर अदू के दिल में  भी राम लिख दूँ

 

           रमेश कँवल

             सृजन 5 नवम्बर,2019

अदबी महाज़,कटक ,अक्टूबर से दिसम्बर 2020 अंक के पृष्ठ 44 पर  प्रकाशित

2020 की नुमाइंदा ग़ज़लें, एनीबुक प्रकाशन के पृष्ठ 248 पर प्रकाशित

30 ग़ज़लगो : 300 ग़ज़लें , एनीबुक प्रकाशन के पृष्ठ 127  पर प्रकाशित