ग़ज़ल : रमेश कँवल

ग़ज़ल : रमेश कँवल 150 150 Ramesh Kamal

मैं अपने होंठों की ताज़गी को तुम्हारे होंटों के नाम लिख दूँ हिना से  रोशन हथेलियों पर नज़र के दिलकश पयाम लिख दूँ   अगर इजाज़त हो जाने-मन तो किताबे-दिल के हर इक वरक़ पर…

ग़ज़ल

ग़ज़ल 150 150 Ramesh Kamal

इस दौर के भारत का  अंदाज़ अनूठा है अब रिश्ता अदालत का इंसाफ़ से टूटा है   जो बात नहीं शामिल क़ानूनी मसौदे में उस पर ही सियासत ने इस देश को लूटा है  …

ग़ज़ल – रमेश ‘कँवल’

ग़ज़ल – रमेश ‘कँवल’ 150 150 Ramesh Kamal

तुम्हारे लफ़्ज़ों को भावनाओं की पालकी में बिठा रहा हूँ दिले- हज़ीं में मची है हलचल मैं आँसुओं को छुपा रहा हूँ   तुम्हारी पलकें झुकी हुई हैं तुम्हारे लब थरथरा रहे हैं तुम्हारी ठोड़ी…

ग़ज़ल — रमेश कँवल

ग़ज़ल — रमेश कँवल 150 150 Ramesh Kamal

तेरी यादों के दस्तावेज़ अल्बम से निकल आए मेरी पलकों पे शबनम के दिए सौ बार मुस्काए   तमन्नाओं की बस्ती में अजब दहशत वबा की है जो परदेशी है क्या खाए रहे घर में…

ग़ज़ल – रमेश कँवल

ग़ज़ल – रमेश कँवल 150 150 Ramesh Kamal

बेटी पर सख्ती, बेटे को मस्ती के अधिकार मिले नगर नगर कस्बों गाँवों को सीख में ये उपहार मिले   बालिग़ नाबालिग़ सब वहशी, तल्बा ज़ुल्म के मकतब के औरत की अस्मत के लुटेरे बन…

6 ग़ज़ल — रमेश कँवल

6 ग़ज़ल — रमेश कँवल 150 150 Ramesh Kamal

दाल रोटी और दवाई के सिवा क्या चाहिए     लॉक डाउन में मेरे भाई भला क्या चाहिए        शर्ट टाई पैंट पहने कोई अब फ़ुर्सत कहाँ अब नहाना खाना सोना है सखा क्या चाहिए   एक…

ग़ज़ल -रमेश ‘कँवल’

ग़ज़ल -रमेश ‘कँवल’ 150 150 Ramesh Kamal

ज़हन की शाख पर ख्वाब फलते रहे वो दरीचे पे दिल के टहलते रहे    हमसफ़र बन के तुम साथ चलते रहे देख कर ये जहाँ वाले जलते रहे   हौसलों के दिए रख हथेली…

ग़ज़ल

ग़ज़ल 150 150 Ramesh Kamal

ज़िन्दगी में मेरी ताज़गी आ गयी दूर अँधेरा हुआ, रौशनी आ गयी   जब कोरोना की सूई भली आ गयी                                                                                                                      देश में फिर नयी ज़िन्दगी आ गयी     माह मौसम कलेंडर बदलते रहे जब दिसम्बर…

रिश्ते निभाएं कैसे दिलों में है बरहमी

रिश्ते निभाएं कैसे दिलों में है बरहमी 150 150 Ramesh Kamal

रिश्ते निभाएं कैसे दिलों में है बरहमी मय्यत निहारने की इजाज़त नहीं मिली   मरघट सी खामुशी है हर इक शहर में अभी बाहर वबा का खौफ़ है कमरों में ज़िन्दगी     पटरी पे…