ग़ज़ल -रमेश ‘कँवल’
ज़हन की शाख पर ख्वाब फलते रहे वो दरीचे पे दिल के टहलते रहे हमसफ़र बन के तुम साथ चलते रहे देख कर ये जहाँ वाले जलते रहे …
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read moreज़िन्दगी में मेरी ताज़गी आ गयी दूर अँधेरा हुआ, रौशनी आ गयी जब कोरोना की सूई भली आ गयी देश में फिर नयी ज़िन्दगी आ गयी माह मौसम…
read moreरिश्ते निभाएं कैसे दिलों में है बरहमी मय्यत निहारने की इजाज़त नहीं मिली मरघट सी खामुशी है हर इक शहर में अभी बाहर वबा का खौफ़ है कमरों में…
read moreदाल रोटी और दवाई के सिवा क्या चाहिए लॉक डाउन में मेरे भाई भला क्या चाहिए शर्ट टाई पैंट पहने कोई अब फ़ुर्सत कहाँ अब नहाना खाना सोना है…
read moreबेटी पर सख्ती, बेटे को मस्ती के अधिकार मिले नगर नगर कस्बों गाँवों को सीख में ये उपहार मिले बालिग़ नाबालिग़ सब वहशी, तल्बा ज़ुल्म के मकतब के औरत…
read moreतुम्हारे लफ़्ज़ों को भावनाओं की पालकी में बिठा रहा हूँ दिले- हज़ीं में मची है हलचल मैं आँसुओं को छुपा रहा हूँ तुम्हारी पलकें झुकी हुई हैं तुम्हारे लब…
read moreमुँह पे गमछा बाँधने की ठान ली गाँव ने दो गज़ की दूरी मान ली आपदाओं में भी अवसर खोजना यह कला भी देश ने पहचान ली मास्क,…
read moreगमले में तुलसी जैसी उगाई है ज़िन्दगी पूजा है, अर्चना है, दवाई है ज़िन्दगी किस ने कहा कि रास न आई है जिंदगी हद दर्ज़ा सादगी से निभाई है…
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