ज़िन्दगी में मेरी ताज़गी आ गयी
दूर अँधेरा हुआ, रौशनी आ गयी
जब कोरोना की सूई भली आ गयी देश में फिर नयी ज़िन्दगी आ गयी
माह मौसम कलेंडर बदलते रहे
जब दिसम्बर गया जनवरी आ गयी
आप दाखिल हुए ज़िन्दगी में मेरी
हर तरफ़ सहने-दिल में ख़ुशी आ गयी
ज़िद की चादर,अना की रिदा ओढ़कर
ठण्ड में भीड़ की बेबसी आ गयी
पेड़ काटे, पहाड़ों का सौदा किया
क़ुदरती क़हर पर बरहमी आ गयी
चाँद से गुफ़्तगू प्यार की हो सके
सोच कर बाग़ में चाँदनी आ गयी
ख़ुशबुओं के चमन फिर सँवरने लगे
सहने-गुलशन में फिर ताज़गी आ गयी
रात दिन चैन से मेरे कटने लगे
ज़िन्दगी में ‘कँवल’ वो ख़ुशी आ गयी