रिश्ते निभाएं कैसे दिलों में है बरहमी मय्यत निहारने की इजाज़त नहीं मिली मरघट सी खामुशी है हर इक शहर में अभी बाहर वबा का खौफ़ है कमरों में ज़िन्दगी पटरी पे हैं मजदूरों के शव रोटियाँ बिखरी ट्रक बस के सफर में भी कहीं मौत है ख़ड़ी रोज़ी छिनी, किराया…
रिश्ते निभाएं कैसे दिलों में है बरहमी मय्यत निहारने की इजाज़त नहीं मिली मरघट सी खामुशी है हर इक शहर में अभी बाहर वबा का खौफ़ है कमरों में ज़िन्दगी पटरी पे हैं मजदूरों के शव रोटियाँ बिखरी ट्रक बस के सफर में भी कहीं मौत है ख़ड़ी रोज़ी छिनी, किराया…
दाल रोटी और दवाई के सिवा क्या चाहिए लॉक डाउन में मेरे भाई भला क्या चाहिए शर्ट टाई पैंट पहने कोई अब फ़ुर्सत कहाँ अब नहाना खाना सोना है सखा क्या चाहिए एक बिस्तर दो बदन माज़ी के ख्वाबे-दिलनशीं घर है, टीवी, फैन से बेहतर हवा क्या चाहिए शाहराहों पर गली कूचों…
बेटी पर सख्ती, बेटे को मस्ती के अधिकार मिले नगर नगर कस्बों गाँवों को सीख में ये उपहार मिले बालिग़ नाबालिग़ सब वहशी, तल्बा ज़ुल्म के मकतब के औरत की अस्मत के लुटेरे बन के सरे-बाज़ार मिले बेटी बचाओ, बेटी पढाओ, बेटी बसाओ के नारे झूठ फ़रेब के गाँवों में फुसलाने के किरदार…
तुम्हारे लफ़्ज़ों को भावनाओं की पालकी में बिठा रहा हूँ दिले- हज़ीं में मची है हलचल मैं आँसुओं को छुपा रहा हूँ तुम्हारी पलकें झुकी हुई हैं तुम्हारे लब थरथरा रहे हैं तुम्हारी ठोड़ी को उँगलियों से मैं धीरे धीरे उठा रहा हूँ तुम्हारी ख़ातिर ही की बग़ावत तुम्हें शिकायत है क्यूँ ज़ियादा…
मुँह पे गमछा बाँधने की ठान ली गाँव ने दो गज़ की दूरी मान ली आपदाओं में भी अवसर खोजना यह कला भी देश ने पहचान ली मास्क, सैनीटाइज़र बनने लगे देश ने किट की चुनौती मान ली ट्रेन मजदूरों की ख़ातिर चल पड़ीं बच्चों ने घर पर सुखद मुस्कान ली …
गमले में तुलसी जैसी उगाई है ज़िन्दगी पूजा है, अर्चना है, दवाई है ज़िन्दगी किस ने कहा कि रास न आई है जिंदगी हद दर्ज़ा सादगी से निभाई है ज़िन्दगी बस टीवी मोबाइल से सजाई है ज़िन्दगी हमने कहाँ कहाँ न गँवाई है ज़िन्दगी जब से हुआ है प्रेम की जुल्फों में…
मसअला मुल्क का हल हो ये कहाँ मुमकिन है घर ग़रीबों का महल हो ये कहाँ मुमकिन है शोख़ अदाओं का न छल हो ये कहाँ मुमकिन है उनके माथे पे न बल हो ये कहाँ मुमकिन है मुख्तलिफ़ राय के अफ़राद इकट्ठे न हों जब खिलना लाज़िम न कँवल हो ये कहाँ…
इस दौर के भारत का अंदाज़ अनूठा है अब रिश्ता अदालत का इंसाफ़ से टूटा है जो बात नहीं शामिल क़ानूनी मसौदे में उस पर ही सियासत ने इस देश को लूटा है मस्ती थी, बहलते थे, सुहबत के उजालों में अब कैसे बताएं हम क्यूं साथ वो छूटा है यौवन के…