• January 3, 2021

मसअला मुल्क का हल हो ये कहाँ मुमकिन है

मसअला मुल्क का हल हो ये कहाँ मुमकिन है

मसअला मुल्क का हल हो ये कहाँ मुमकिन है 150 150 Ramesh Kamal

मसअला मुल्क का हल हो ये कहाँ मुमकिन है

घर ग़रीबों का महल हो ये कहाँ मुमकिन है

 

शोख़ अदाओं का न छल हो ये कहाँ मुमकिन है

उनके माथे पे न बल हो ये कहाँ मुमकिन है

 

मुख्तलिफ़ राय के अफ़राद इकट्ठे न हों जब

खिलना लाज़िम न कँवल हो ये कहाँ मुमकिन है

 

अब हुकूमत है नयी, तोहफ़ा में गीता लीजे

गिफ्ट अब ताजमहल हो ये कहाँ मुमकिन है

 

एक से एक मिले मुल्क को रहबर अब तक

राहबर कोई ‘अटल’ हो ये कहाँ मुमकिन है

 

अब कहाँ कहते हैं इस दौर के उस्तादे-ग़ज़ल

मीर  सी कोई ग़ज़ल हो ये कहाँ मुमकिन है

 

पेड़ पौधे ,न कोई छाँव, न बारिश,न घटा

रास्ते में कहीं नल हो ये कहाँ मुमकिन है

 

कर्म कीजे कि यही आपके वश में है ‘कँवल’

आपके हाथ में फल हो ये कहाँ मुमकिन है

 

सृजन 20 मई,2019

अक़ीदत के फूल : पृष्ठ 138