गज़लें

ग़ज़ल – रमेश ‘कँवल’ 150 150 Ramesh Kamal

ग़ज़ल – रमेश ‘कँवल’

तुम्हारे लफ़्ज़ों को भावनाओं की पालकी में बिठा रहा हूँ दिले- हज़ीं में मची है हलचल मैं आँसुओं को छुपा रहा हूँ   तुम्हारी पलकें झुकी हुई हैं तुम्हारे लब…

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ग़ज़ल — रमेश कँवल 150 150 Ramesh Kamal

ग़ज़ल — रमेश कँवल

तेरी यादों के दस्तावेज़ अल्बम से निकल आए मेरी पलकों पे शबनम के दिए सौ बार मुस्काए   तमन्नाओं की बस्ती में अजब दहशत वबा की है जो परदेशी है…

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ग़ज़ल – रमेश कँवल 150 150 Ramesh Kamal

ग़ज़ल – रमेश कँवल

बेटी पर सख्ती, बेटे को मस्ती के अधिकार मिले नगर नगर कस्बों गाँवों को सीख में ये उपहार मिले   बालिग़ नाबालिग़ सब वहशी, तल्बा ज़ुल्म के मकतब के औरत…

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6 ग़ज़ल — रमेश कँवल 150 150 Ramesh Kamal

6 ग़ज़ल — रमेश कँवल

दाल रोटी और दवाई के सिवा क्या चाहिए     लॉक डाउन में मेरे भाई भला क्या चाहिए        शर्ट टाई पैंट पहने कोई अब फ़ुर्सत कहाँ अब नहाना खाना सोना है…

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ग़ज़ल -रमेश ‘कँवल’ 150 150 Ramesh Kamal

ग़ज़ल -रमेश ‘कँवल’

ज़हन की शाख पर ख्वाब फलते रहे वो दरीचे पे दिल के टहलते रहे    हमसफ़र बन के तुम साथ चलते रहे देख कर ये जहाँ वाले जलते रहे  …

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नुक़रई उजाले पर सुरमई अंधेरा है 150 150 rorrimradmin

नुक़रई उजाले पर सुरमई अंधेरा है

नुक़रई उजाले पर सुरमई अंधेरा है यानी मेरी क़िस्मत को गर्दिशों ने घेरा है वक़्त ने जुदाई के ज़ख़्म भर दिए लेकिन ज़ख़्म की कहानी भी वक़्त का ही फेरा…

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अपनों के दरमियान सलामत नहीं रहे 150 150 rorrimradmin

अपनों के दरमियान सलामत नहीं रहे

अपनों के दरमियान सलामत नहीं रहे दीवार-ओ-दर मकान सलामत नहीं रहे नफ़रत की गर्द जम्अ निगाहों में रह गई उल्फ़त के क़द्र-दान सलामत नहीं रहे रौशन हैं आरज़ू के बहुत…

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ज़िंदगी इन दिनों उदास कहाँ 150 150 rorrimradmin

ज़िंदगी इन दिनों उदास कहाँ

ज़िंदगी इन दिनों उदास कहाँ तुझ से मिलने की दिल में आस कहाँ मौसमों में गुलों की बास कहाँ मुफ़्लिसी मेरी ख़ुश-लिबास कहाँ लॉन से फूल पतियाँ ओझल तेरी यादों…

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