मसअला मुल्क का हल हो ये कहाँ मुमकिन है
मसअला मुल्क का हल हो ये कहाँ मुमकिन है घर ग़रीबों का महल हो ये कहाँ मुमकिन है शोख़ अदाओं का न छल हो ये कहाँ मुमकिन है उनके…
read moreमसअला मुल्क का हल हो ये कहाँ मुमकिन है घर ग़रीबों का महल हो ये कहाँ मुमकिन है शोख़ अदाओं का न छल हो ये कहाँ मुमकिन है उनके…
read moreइस दौर के भारत का अंदाज़ अनूठा है अब रिश्ता अदालत का इंसाफ़ से टूटा है जो बात नहीं शामिल क़ानूनी मसौदे में उस पर ही सियासत ने इस…
read moreमैं अपने होंठों की ताज़गी को तुम्हारे होंटों के नाम लिख दूँ हिना से रोशन हथेलियों पर नज़र के दिलकश पयाम लिख दूँ अगर इजाज़त हो जाने-मन तो किताबे-दिल…
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