रिश्ते निभाएं कैसे दिलों में है बरहमी
मय्यत निहारने की इजाज़त नहीं मिली
मरघट सी खामुशी है हर इक शहर में अभी
बाहर वबा का खौफ़ है कमरों में ज़िन्दगी
पटरी पे हैं मजदूरों के शव रोटियाँ बिखरी
ट्रक बस के सफर में भी कहीं मौत है ख़ड़ी
रोज़ी छिनी, किराया भला कैसे दें घर का
घर बद्र हुए , भूख से बच्चों की है सिसकी
अब रेल से घर जाएँ तो जाएँ भला कैसे
मरकज़ ओ रियासत की सियासत नहीं भली
कर लेंगे कमाई कभी जां आज बचा लें
हरदम तो रहेगी नहीं आँखों में यह नमी
ये वक़्त गुज़र जाएगा रह घर में तू ‘कँवल’
नाचेगी कभी झूमेगी आँखों में ज़िन्दगी
रमेश ‘कँवल’
17 मई,2020