गमले में तुलसी जैसी उगाई है ज़िन्दगी
पूजा है, अर्चना है, दवाई है ज़िन्दगी
किस ने कहा कि रास न आई है जिंदगी
हद दर्ज़ा सादगी से निभाई है ज़िन्दगी
बस टीवी मोबाइल से सजाई है ज़िन्दगी
हमने कहाँ कहाँ न गँवाई है ज़िन्दगी
जब से हुआ है प्रेम की जुल्फों में क़ैद वो
उसके लिए ग़मों से रिहाई है ज़िन्दगी
शर्तों पे अपने सबको नचाती रही है ये
कब दोस्तों की मुट्ठी में आई है ज़िन्दगी
शोहरत की धूप हमको मयस्सर नहीं हुई
बरगद के नीचे हमने बिताई है ज़िन्दगी
उसके बदन की खुशबू समेटे हुए हूँ मैं
मेरी भी रूह में तो समाई है ज़िन्दगी
उस्ताद की नसीहते-पुर-मा’नी याद हैं
‘अपने लिए नहीं है, पराई है ज़िन्दगी’
बागों की तितलियों सी लुभाती है ये ‘कँवल’
खुशियां हैं यानी ग़म से जुदाई है ज़िन्दगी
सृजन 22 मई 2019
अक़ीदत के फूल : पृष्ठ 166