• January 3, 2021

इस दौर के भारत का  अंदाज़ अनूठा है

इस दौर के भारत का  अंदाज़ अनूठा है

इस दौर के भारत का  अंदाज़ अनूठा है 150 150 Ramesh Kamal

इस दौर के भारत का  अंदाज़ अनूठा है

अब रिश्ता अदालत का इंसाफ़ से टूटा है

 

जो बात नहीं शामिल क़ानूनी मसौदे में

उस पर ही सियासत ने इस देश को लूटा है

 

मस्ती थी, बहलते थे, सुहबत के उजालों में

अब कैसे बताएं हम क्यूं साथ वो छूटा है

 

यौवन के दरीचों पर इतराते हुए बोले

अब फिर न कभी कहना इस शोख़ ने लूटा है

 

उस हुस्न सिफ़त दिलबर की ऐसी तमन्ना थी

जब ज़ुल्फ़ संवारी है इक आईना टूटा है

 

अफ़्वाहों की शहज़ादी कहती है अदालत में

मैं वाक़ई झूटी हूं ,सब वाक़िआ झूटा है

 

अब सोचिए मंदिर या मस्जिद में कँवल जाकर

चौराहे पे आकर क्यों सर आपका फ़ूटा है

 

रमेश ‘कंवल’        رمیش کنول 

16 जनवरी,2020

अक़ीदत के फूल  : पृष्ठ 212