• May 20, 2021

ग़ज़ल – रमेश ‘कँवल’

ग़ज़ल – रमेश ‘कँवल’

ग़ज़ल – रमेश ‘कँवल’ 150 150 Ramesh Kamal

फ़ा इ ला तुन   फ़ा इ ला लुन   फ़ा इ लुन

दर्द का लश्कर उधर तैयार है 

इश्क़ का आँगन इधर गुलज़ार है

 

हर तरफ़ जब लूट का बाज़ार है

होश में रहिये यही दरकार है

 

पत्थरों से बच निकलना सीखकर

आजकल का आईना हुशियार है 

 

एक मिसरा क्या ज़ुरूरत का पढ़ा

सामने  एहसान का अख़बार है

 

क़ाफ़ियों मिसरों की जब तज़ईन हो 

फिर तग़ज्ज़ुल ज़ीनते अशआर है

 

आलमे-मस्ती का मौसम देखकर

झूमता गाता मेरा दिलदार है

 

मन मुताबिक़ एप डाउनलोड हैं

हुबहू दिखता कहाँ किरदार है

 

फूल से ख़ुशबू जुदा करने की ज़िद 

रायगाँ है, कोशिशे-बेकार है

                       ख़ूबसूरत है यक़ीनन ज़िन्दगी

                       हाँ ! ‘कँवल’ को ज़िन्दगी से प्यार है 

सृजन : 24 अक्टूबर, 2020

 

अभिनव प्रयास,अलीगढ़ जनवरी-मार्च 2021 अंक में पृष्ठ 17 पर प्रकाशितदि अंडरलाइन,कानपुर के ग़ज़ल विशेषांक दिसम्बर 2020 के पृष्ठ 44 पर प्रकाशित