अन्दर इक तूफ़ान सतह पर ख़ामोशी का पहरा था
आँखों में फ़नकारी थी मासूम सा उनका चेहरा था
काँटों की हर एक चुभन मंज़ूर थी शातिर नज़रों को
जब तक शाखों, टहनी पर फूलों का रूप सुनहरा था
सूरज पर इल्ज़ाम था धूप उजाला बांटते रहने का
तारीकी ने उसे डुबोया जहाँ पे सागर गहरा था
डूबने वाले के हाथों में हाथ अपना पकड़ाना मत
अपनी हिफ़ाज़त का नुस्ख़ा बचपन का एक ककहरा था
पहली बार मिले थे जब वे रूप ‘कँवल’ था मनमोहक
लब गेसू थे मस्त, अदाएं क़ातिल, बदन छरहरा था
19 अक्टूबर,2020