• May 20, 2021

ग़ज़ल —- रमेश ‘कँवल’

ग़ज़ल —- रमेश ‘कँवल’

ग़ज़ल —- रमेश ‘कँवल’ 150 150 Ramesh Kamal

गमले में तुलसी जैसी उगाई है ज़िन्दगी

पूजा है, अर्चना है, दवाई है ज़िन्दगी

 

किस ने कहा कि रास न आई है जिंदगी

हद दर्ज़ा सादगी से निभाई है ज़िन्दगी

 

बस टीवी मोबाइल से सजाई है ज़िन्दगी

हमने कहाँ कहाँ न गँवाई है ज़िन्दगी

 

जब से हुआ है प्रेम की जुल्फों में क़ैद वो

उसके लिए ग़मों से रिहाई है ज़िन्दगी

 

शर्तों पे अपने सबको नचाती रही है ये

कब दोस्तों की मुट्ठी में आई है ज़िन्दगी

 

शोहरत की धूप हमको मयस्सर नहीं हुई 

बरगद के नीचे हमने बिताई है ज़िन्दगी

 

उसके बदन की खुशबू समेटे हुए हूँ मैं

मेरी भी रूह में तो समाई है ज़िन्दगी

 

उस्ताद की नसीहते-पुर-मा’नी याद हैं 

अपने लिए नहीं है, पराई  है ज़िन्दगी 

 

बागों की तितलियों सी लुभाती है ये ‘कँवल’

खुशियां हैं यानी  ग़म से जुदाई है ज़िन्दगी

 

 

सृजन 22 मई 2019

अक़ीदत के फूल :  एनीबुक प्रकाशन के पृष्ठ 166 पर प्रकाशित

30 ग़ज़लगो : 300 ग़ज़लें , एनीबुक प्रकाशन के पृष्ठ 132  पर प्रकाशित