मफ़ऊलु फ़ाइलातु मफ़ाईलु फ़ाइलुन
जामुन की शाख़ पर कभी झूला न डालिए
उस महजबीं के प्यार को दिल से निकालिए
तक़रीरे-इन्तख़ाब हक़ीक़त से दूर हैं
इन लीडरों के वादों को हँस कर ही टालिये
सूरज की लालिमा में अँधेरों का खौफ़ है
सुहबत से इनकी जल्द ही ख़ुद को निकालिये
ख़ुश फ़िक्र वादियों से से गुज़रने के बाद ही
इन क़ाफ़ियों को ग़ज़लों के सांचे में ढालिए
तलवार की बिसात से बदली है रुत कहाँ
फ़रमान से ये फल तो दरख़्तों पे आलिए
सौदा कभी करें न फ़जीलत का दोस्तो
चूल्हे पे सब्रो-ग़म के फ़जीहत उबालिए
हरगिज़ बुरे दिनों से न घबराइए ‘कँवल’
ज़ेवर ज़मीर का किसी सूरत संभालिये
सृजन – 22 अक्टूबर, 2020