मुँह पे गमछा बाँधने की ठान ली
गाँव ने दो गज़ की दूरी मान ली
आपदाओं में भी अवसर खोजना
यह कला भी देश ने पहचान ली
मास्क, सैनीटाइज़र बनने लगे
देश ने किट की चुनौती मान ली
ट्रेन मजदूरों की ख़ातिर चल पड़ीं
बच्चों ने घर पर सुखद मुस्कान ली
शहर से जब सावधानी हट गयी
दारु ने लोगों की हाय जान ली
कुछ मसीहा जब गले मिलने लगे
मौत ने दहशत की चादर तान ली
थी क़यादत मोदी की जग को ‘कँवल’
राह भारतवर्ष ने आसान ली
— रमेश ‘कँवल’
17 मई,2020