75 रदीफ़ों में ताबिंदा ग़ज़लों का सम्पादन – रमेश ‘कँवल
स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष को अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है | विकसित भारत ,गुलामी के प्रतीक अंशों से मुक्ति, अपनी विरासत पर गर्व, देश की एकता और एकजुटता, और नागरिकों द्वारा अपने कर्तव्य पालन ये 5 प्रण हैं जिन्हें मानस-स्तम्भ बनाने से हम 2047 तक अपने युवाओं को विश्व के समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में भारतवर्ष समर्पित कर सकेंगे |
*सुभाष चन्द्र बोस* देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में से एक थे लेकिन उन्हें उनका यथोचित सम्मान देने/दिलाने में हमें 75 वर्ष लग गए | *इंडिया गेट* पर वह स्थान जहाँ अँगरेज़ सम्राटों की मूर्तियाँ लगी होती थीं वहां देश के प्रथम योद्धा प्रधानमन्त्री की प्रतिमा स्थापित कर हमने अपनी वर्षों की ग़लतियों को सुधारने का प्रयास किया है और विरासत पर गर्व करने का एक अवसर ढूंढा है | *सुभाष चन्द्र बोस आपदा प्रबंधन पुरस्कार* का शुभारम्भ कर हमने स्वयं को गौरवान्वित किया है | *इंडियन नेशनल आर्मी* के सैनिकों का *लाल क़िला* में जिस जगह 5 नवम्बर 1945 से 3 जनवरी 1946 तक युद्ध अपराधी मान कर कोर्ट मार्शल चलाया गया, वहां नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की 123 वीं जयंती पर एक *डिजिटल संग्रहालय* का शुभारंभ किया गया| राजनीतिक कारणों से जिन नेताजी को सर्वाधिक लोकप्रिय होने के बावजूद सर्वाधिक उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा, उन्हें हम अपनी विरासत मानकर और यथोचित सम्मान देकर प्रायश्चित कर रहे हैं |
*अमृत महोत्सव की ग़ज़लें उन्ही नेताजी को समर्पित करते हुए मुझे पर्याप्त संतोष हो रहा है |*
562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारत में विलीनीकरण करने वाले लौह पुरुष *सरदार बल्लभ भाई पटेल* की 182 मीटर ऊँची लौह प्रतिमा *एकता की मूर्ति* राष्ट्र को लोकार्पण कर देश ने अपनी विरासत पर गर्व करने का दूसरा अवसर ढूँढा है |
केवड़िया गुजरात में स्थापित एकता की मूर्ति का इस किताब में दर्शन करना अत्यंत सुखद है।
पिछले 60-70 वर्षों से अपने को गर्व से हिन्दू कहने में हम हीन भावना से ग्रसित थे | सेक्युलर का ऐसा तमगा लगा था कि सोमनाथ के मंदिर के पुनरोद्धार एवं देव प्राण प्रतिष्ठा में पं.जवाहरलाल नेहरु, तत्कालीन प्रधान मंत्री ने जाने से मना कर दिया और डॉ राजेंद्र प्रसाद, तत्कालीन राष्ट्रपति के जाने पर भी आपत्ति दर्ज की गयी। भारत आध्यात्मिक भावनाओं से संचालित होने वाला देश है, लेकिन अपने मंदिरों में जाने को मूढ़ता से जोड़कर देखा जाता रहा है | हर्ष और प्रसन्नता का विषय है कि अब राष्ट्र नायकों ने आध्यात्मिकता से परहेज़ करने को कमजोरी माना है और देवस्थलों पर मत्था टेकने में गर्व महसूस किया है |
*अयोध्या के राम मंदिर की भव्यता, काशी विश्वनाथ मंदिर का नूतन परिवेश और स्थापत्य सज्जा ,उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर का परिष्कृत और परिवर्धित स्वरुप सबको आकर्षित करता है |*
हमें वामपंथियों ने क्या इतिहास पढ़ाया | 200 साल लूटने खसोटने वाले बाबर,अकबर और औरंगज़ेब जैसे आततायी विधर्मियों को महान शासक और उनके दो ढाई सौ साल के काल खंड को महान साम्राज्य कह कर प्रचारित किया गया जबकि 1000 वर्ष तक राज्य करने वाले चोल साम्राज्य, 650 वर्षों तक राज्य करने वाले अहोम साम्राज्य, 6- 6 सौ साल तक राज्य करने वाले चालुक्य,पल्लव और पंड्या साम्राज्य,550 वर्षों तक राज्य करने वाले मौर्य साम्राज्य,500 वर्षों तक राज्य करने वाले सातवाहन साम्राज्य और 4-4 सौ साल राज्य करने वाले चंदेल साम्राज्य और गुप्त साम्राज्य के बारे में न तो पढ़ाया गया, न उनकी शासन व्यवस्था की अच्छाइयों से परिचित कराया गया | उस काल खंड में निर्मित वास्तु एवं स्थापत्य कला के नमूनों को, जो आज भी सभ्यता और संस्कृति के कीर्ति स्तम्भ हैं, न पढ़ाकर सिर्फ लालक़िला ,ताजमहल कुतुबमीनार,विक्टोरिया मेमोरियल इत्यादि के बारे में ही विस्तार से बताया गया | लेकिन देश में फैले हुए विभिन्न मंदिरों (कर्णाटक के अमृतेश्वर मंदिर,परिक्षेत्र मुरुदेश्वर मंदिर ,वीरनारायण मंदिर,होयसला मंदिर, तमिलनाडु के मीनाक्षी मंदिर, एकामाब्रेश्वर मंदिर,जुम्बकेश्वर मंदिर,श्री रंगस्वामी मंदिर,संवाद्शाला, सुचिन्द्रम मंदिर कन्याकुमारी, छतीसगढ़ का ओना कोना मंदिर, गुजरात का द्वारिकाधीश मंदिर,मोढेरा सूर्य मंदिर,राजस्थान का विजयस्तम्भ इत्यादि) की स्थापत्य कला के अनूठेपन और विलक्षणता के बारे में पढ़ाया ही नहीं गया | अकबर और औरंगज़ेब को महान शासक बताया गया ; अलाउद्दीन खिलजी के बाज़ार नियंत्रण के गुण गाये गए, लेकिन राणा सांगा ,महाराजा रंजीत सिंह, महाराणा प्रताप, क्षत्रपति शिवाजी, दुर्गा दास राठोड, महाराणा राज सिंह , रानी दुर्गावती, राजा भोज, विक्रमादित्य, नागभट्ट प्रथम एवं द्वितीय,चन्द्र गुप्त मौर्य,बिन्दुसार,समुद्रगुप्त,स्कन्दगुप्त इत्यादि बहादुर एवं प्रतापी राजाओ के शौर्य,कीर्ति और लोकप्रियता के देदीप्यमान इतिहास से दूर रखा गया।
भारतवर्ष के कुछ प्राचीन मंदिरों की विलक्षण स्थापत्य कला और अनूठे सौन्दर्य की झलक दिखाए बिना अमृत महोत्सव की ग़ज़लों का पर्याप्त आनन्द कैसे लिया जा सकता है | अस्तु प्राचीन स्थापत्य कला के कुछ नमूने इस किताब के प्रारंभिक पृष्ठों पर नयनों को अभिराम सुख देते हैं |
विज्ञान के लिए हमें पाश्चात्य देशों पर आश्रित बताया गया लेकिन हमें यह कहाँ बताया गया कि हमारे ऋषियों मनीषियों ने पूर्व में ही यह ज्ञान वेद उपनिषदों में संग्रहीत कर रखा है |
विष्णु पुराण में चार्ल्स डार्विन के विकास के क्रमिक परिवर्तन के सिद्धांत हैं | अंतरिक्ष यान का उल्लेख ऋग्वेद में है | ऋग्वेद में ही सरोगासी का उल्लेख है | 4000 साल पहले ही महर्षि कणाद ने जल चक्र (water cycle)के बारे में बताया | 3000 वर्ष ईसापूर्व ऋषि सुश्रुत ने गूढ़ चिकित्सकीय तथ्यों का उद्घाटन किया| हमारे देश में सुश्रुत को उतना मान- सम्मान नहीं मिला जितना विदेशों में | ऑस्ट्रेलिया में तो उनकी 40 फीट ऊँची प्रतिमा फादर ऑफ़ सर्जरी कह कर लगाईं गई है | न्यूटन से 700 वर्ष पहले ही भास्कराचार्य ने अपनी पुस्तक सिद्धांत शिरोमणी में कैलकुलस और एंगुलर वेलोसिटी का उल्लेख किया |
12 वर्षों के अंतराल पर कुम्भ आयोजन हजारों साल से चल रहा है यह वृहस्पति के 12 वर्ष में सूर्य का चक्कर लगाने पर आधारित है। यह ज्ञान आधुनिक विज्ञान को कुछ सदियों पूर्व ही ज्ञात हुआ |
हमारा 108 पवित्र अंक और कुछ नहीं, बल्कि पृथ्वी से सूर्य की दूरी और उसके diameter का या पृथ्वी से चाँद की दूरी और उसके व्यास का अनुपात है |
गणित में हम कितना आगे थे इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि GEOMETRY शब्द संस्कृत के ज्यामिति शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है पृथ्वी का मापन |
शतरंज का उल्लेख चतुरंग नाम से महाभारत काल में मिलता है जिसे अँगरेज़ चेस कहते हैं |
वामपंथी शिक्षाविदों और विधर्मी इतिहासकारों ने यह कहाँ बताया कि भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण , आचार्य कणाद ने अणु परमाणु, ऋषि विश्वामित्र ने मिसाइल ,ऋषि भारद्वाज ने वायुयान, गर्ग मुनि ने नक्षत्रों, आचार्य चरक ने शरीर विज्ञान, गर्भ विज्ञान, औषधि विज्ञान, बौद्धयन ने त्रिकोणमितीय रचना, कपिल मुनि ने संख्या दर्शन और पतंजलि ने योग विज्ञान का ज्ञान विश्व को पूर्व में ही दे दिया था।
हमारे सप्त ऋषि – अत्री, वशिष्ठ, कश्यप, गौतम, भारद्वाज, विश्वामित्र और अंगिरस ज्ञान विज्ञान कला और संस्कृति के ध्वजवाहक रहे हैं, लेकिन आजादी के बाद के 5-5 विधर्मी शिक्षा मंत्रियों ने हमें इनकी उपलब्धियों से दूर रखकर हमारा दिमाग कुंद कर दिया |
ख़ुशी की बात है कि *राष्ट्रीय शिक्षा नीति* प्रभावी होने से स्थितियों में काफी परिवर्तन होने लगा है | हम अपने अतीत पर गौरव करने लगे हैं |हमारा मानसिक दृष्टिकोण बदलने लगा है | आततायी एक कोने में खड़े हो गए हैं और दुनिया उन्हें देखने लगी है | *यह अमृत महोत्सव है |*
इन परिस्थितियों में गुलामी की मानसिकता से मुक्त होने की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है | *अमृत महोत्सव की ग़ज़लें स्वयं को पहचानने का प्रयास हैं।*
ग़ज़लों के संकलन तो आए दिन बाज़ार में आते रहते हैं लेकिन वे किसी थीम से प्रेरित नहीं होते | इसके पहले अक़ीदत के फूल, 2020 की नुमाइंदा ग़ज़लें के प्रकाशन के बाद मैंने इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल की बेहतरीन ग़ज़लें का संपादन किया | इस पुस्तक में चार सालिम बह्रों पर ही ग़ज़लें शामिल की गयीं | उन सालिम बह्रों में फिल्मों के गीत के मुखड़े भी दिए गए और दिए गए उन्हीं सालिम बह्रों में मशहूर शायरों के मतले | लोग प्रेमिकाओं की चर्चा को शायरी का केंद्रबिंदु बनाते हैं लेकिन उस संकलन में शायरों/शाइरात ने अपनी पत्नियों/पतियों की प्रशंसा में अशआर कहे | कहने का तात्पर्य यह कि एक थीम के अनुरूप संकलन निकाला गया | अगले संकलन में एक रुक्न में कही गयी ग़ज़लों को ही सम्मान दिया गया और नाम रखा गया “एक रुक्नी अनूठी ग़ज़लें”
अमृत महोत्सव को भी मैंने ग़ज़लों की सुगंध से सराबोर करना चाहा |दिमाग में बात आई कि क्यों नहीं 75 साल के लिए 75 रदीफ़ों में ग़ज़लें संकलित की जाएँ | काम मुश्किल और प्रथम दृष्टया नामुमकिन लगा | शुरू में मैंने 36 रदीफ़ पर दोस्तों से ग़ज़लें भेजने का आग्रह किया जो बढ़ कर 40 हो गईं | करीब 3-साढे 3 सौ ग़ज़लें प्राप्त हुईं | इसी बीच पहाड़ों पर (हिमाचल प्रदेश) बसने वाली अद्भुत ग़ज़लें कहने वाली मेरी मित्र *डॉ नलिनी विभा ‘नाज़ली’ ने अपनी पुस्तक “दीवान-ए-‘नाज़ली’ भेंट की | ऐसी किताब मैंने आज तक नहीं देखी | उर्दू के एक एक अक्षर पर समाप्त होने वाले रदीफ़ का प्रयोग उन्होंने क़ाबिले-एहतराम सलाहियत से किया है |मुझे 40 से ज़्यादा रदीफ़ों पर उनकी मनचाही ग़ज़लें मिल गयीं | मैं हृदय की गहराइयों से उनका आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने इसे ‘अमृत महोत्सव की ग़ज़लें में शामिल करने की सहर्ष सहमति दे दी | *वाक़ई मैं उनका बेहद ममनून हूँ |*
*डॉ आनन्द किशोर* हैं तो एम्.बी.बी.एस. चिकित्सक लेकिन अपने रोगियों की सेवा करते करते उन्होंने सर्वप्रथम मुझे 36 रदीफ़ों पर बेहतरीन ग़ज़लें भेज दीं | सहारनपुर के अमित ‘अहद’ जी ने भी लगभग 40 रदीफ़ों पर एक से बढ़ कर एक ग़ज़लों का ज़खीरा भेज दिया | फेसबुक पर जो ग़ज़लें पसंद आ गयीं मैंने उन्हें इस किताब में साभार शामिल कर लिया | *राजमूर्ति सौरभ* आज के बेहतरीन शायरों में हैं | इतनी अच्छी अच्छी ग़ज़लों का सृजन करते हैं कि मन मुग्ध हो जाता है | ईश्वर उन्हें स्वस्थ और दीर्घायु रखे | एवमस्तु ! उनकी ग़ज़लें भी इस किताब की शोभा बढा रही हैं
अब मैं रदीफ़ों से आपका परिचय कराऊँ | हम जन्म लेते हैं तो मिटटी,हवा,गगन,आग और पानी (पञ्च तत्व ) से सामना होता है |धूप निकलती है दिन होता है | गाँव घर में आदमी और औरत से परिचय होता है |प्रेम की ख़ुशबू जवानी की ख़ुशी जिंदगी इत्यादि लुभाने लगती है |पहाड़ बादल बारिश झील नदी मौसम आँखों को भाने लगते हैं |फूल,पत्ते,चाँद सितारा गीत ग़ज़ल से सामना होता है | इन्हीं सब विषयों को रदीफ़ मानकर ग़ज़लकारों ने अपनी ग़ज़लें कही हैं | अब उनका लुत्फ़ लेने की बारी आपकी है |
*इस संकलन का श्रीगणेश श्री देवमणि पाण्डेय की ईश स्तुति और डॉ नलिनी विभा ‘नाज़ली’ की नज़्म नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से की गयी है |*
*इस ग़ज़ल संग्रह में 53 ग़ज़लकारों की 431 ग़ज़लें सम्मिलित हैं |*
ज़िन्दगी पर सबसे ज्यादा ग़ज़लें (37),मिली हैं | पानी पर 25 , आदमी पर 23 , ग़ज़ल पर 20 , मिटटी पर 18, धूप पर 17, चाँद पर 16 ,हवा पर15 , आंसू और दिन पर 13 -13, औरत पर 12, खुशबू पर 11, आग पर 10 ग़ज़लें इस संग्रह में सम्मिलत है | यानी 75 रदीफ़ में से सिर्फ 13 रदीफ़ पर ही 230 ग़ज़लें हो गयीं | शेष रदीफ़ों में 201 ग़ज़लें हैं |
10 से ज़्यादा रदीफ़ों में ग़ज़लें कह पाने वाले शायरों में श्री अमित ‘अहद’, सहारनपुर39 ग़ज़लें, डॉ आनन्द किशोर दिल्ली 35 ग़ज़लें, श्री रमेश ‘कँवल’ ,पटना 32 ग़ज़लें ,श्री प्रेम रंजन अनिमेष,मुंबई 30 ग़ज़लें श्री राज मूर्ति सौरभ,प्रतापगढ़, 22 ग़ज़लें, डॉ विनोद प्रकाश गुप्ता शलभ,नॉएडा 16 ग़ज़लें, श्री अशोक अंजुम,अलीगढ़ 13 ग़ज़लें, श्री कुमार पंकजेश,पटना 12 ग़ज़लें , श्री रवि खंडेलवाल, इंदौर 10 ग़ज़लें,
श्री हिमकर श्याम,रांची 10 ग़ज़लें शामिल हैं |
श्री विकास सोलकी,खगड़िया ने 9 ,श्री शरद रंजन शरद,आरा ने 9, डॉ सुनीता सिंह ‘सुधा’ ,बनारस ने 8, श्री कालजयी घनश्याम, दिल्ली ने 8 , श्री प्रदीप राजपूत ‘माहिर’,रामपुर ने 8 ,श्रीमती मधु चोपड़ा मधुमन,पटियाला ,
पंजाब ने 8 श्रीमती मीना भट्ट सिद्धार्थ,जबलपुर ने 8 डॉ सीमा विजय वर्गीय,अलवर, राजस्थान ने 7 डॉ कविता विकास,धनबाद ने 7, श्री नवीन माथुर,पंचोली ने 7 , डॉ ब्रह्मजीत गौतम ग़ाज़ियाबाद ने 5 ,श्री अरविन्द असर,दिल्ली ने 5 डॉ आरती कुमारी,मुज़फ्फ़रपुर ने 5 ,डॉ महेंद्र अग्रवाल,शिवपुरी, ने 5 ,श्री संजीव प्रभाकर,गांधीनगर,गुजरात ने 5 और श्री शुभ चन्द्र सिन्हा,पटना ने 5 ग़ज़लें प्रेषित कर हमें कृतार्थ किया है |
भले ही ग़ज़लों की कविता संसार में भरमार हो गयी हो लेकिन ग़ज़ल की विधा आसान नहीं है | मैंने लगभग 200 से अधिक ग़ज़लकारों को अमृत महोत्सव की ग़ज़ले किताब में शामिल होने की गुज़ारिश की लेकिन जिस साल मेरा जन्म हुआ (1953 ) मात्र 53 शायर की ग़ज़लों को ही ग़ज़ल आकाश में सितारों सा चमकने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | ग़ज़ल कहने की सामर्थ्य रखनेवाले ग़ज़लकारों को ही अनुभव होगा कि इन रदीफ़ों में ग़ज़लें कहना कितना मुश्किल है |
किताब में प्राचीन मंदिरों के रंगीन चित्र दिए गए हैं, जिससे हम यह निष्कर्ष निकाल सकें कि क्या इन मंदिर भवनों के पासंग में भी हमें गर्व करने हेतु दिखाए गए भवन आते है | अयोध्या जी का श्री राम मंदिर, श्री काशी विश्वनाथ जी एवं श्री उज्जैन जी के महाकालेश्वर मंदिर की रंगीन छवियाँ दी गयी हैं | जिनका दर्शन कर या जहाँ जाकर आपको आत्म संतोष का बोध होगा | राष्ट्रीयता के भाव का उदय होगा | इस संकलन में शुरू में सभी शायरों के रंगीन चित्र और रदीफ़वार अनुक्रमणिका दी गयी है | आख़िर में ग़ज़लकारों के पते भी अंकित किये गए है |
मैं सभी शायरों/ शाइरात का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ | उनके रचना सहयोग के लिए उनका आभार व्यक्त करता हूँ और आपको नमामि गंगे के बाद शुद्ध हुई ग़ज़ल गंगा में डुबकी लगाने का निमंत्रण देता हूँ |
इति शुभम
पटना
8 नवम्बर,2022 रमेश ‘कँवल’
कार्तिक पूर्णिमा चेयर पर्सन
विक्रम संवत २०७९ बज़्मे-हफ़ीज़ बनारसी,पटना