गगन धरती की मैं हलचल रहा हूँ
युगों से सूर्य बन के जल रहा हूँ
ग़मों की बज़्म में शामिल रहा हूँ
ख़ुशी के गाँव की महफ़िल रहा हूँ
अँधेरों के फ़साने से हूँ वाकिफ़
दिया हूँ शाम से ही जल रहा हूँ
लगाया है मुझे नाज़ो-अदा से
किसी की आँख का काजल रहा हूँ
मुझे पहनाया है मेरे पिया ने
वफ़ा के पांव का पायल रहा हूँ
समय हूँ हाथ ना आया किसी के
बताने वालों का संबल रहा हूँ
कोरोना अब नहीं है कह के सब से
‘कँवल’ मैं ख़ुद से ख़ुद को छल रहा हूं
शुक्रवार, 23 अक्टूबर, 2020