• January 22, 2022

ग़ज़ल – रमेश कँवल

ग़ज़ल – रमेश कँवल

ग़ज़ल – रमेश कँवल 150 150 Ramesh Kamal

मफ़ऊलु मुफ़ाईलु  मुफ़ाईलु फ़ऊलुन

ठुकराओगे तो सोच लो पछताओगे बेशक
पत्थर हूँ  शिवालों में मुझे पाओगे बेशक

उम्मीद की दुल्हन हूँ निगाहों में बसा लो
मंज़िल पे मेरे साथ पहुँच जाओगे बेशक

तुम नींद में भी मुझ से जुदा हो नहीं सकते
ख़्वाबों के दरीचों पे नज़र आओगे बेशक

मुझको तो सज़ाओं की नहीं फ़िक्र मगर तुम 
ख़ुद अपनी ख़ताओं पे ही शरमाओगे बेशक

पेट्रोल या माचिस की ज़रूरत ही नहीं अब
तक़रीरे-सियासत से ही जल जाओगे बेशक

ख़ुशबू से मुअत्तर करूँ चाहोगे अगर तुम  
ज़ुल्फ़ों में मुझे गजरे सा पहनाओगे बेशक

मोदी वो हक़ीक़त है ‘कँवल’ दावा है मेरा
तुम जल्द ही दिल से उन्हें अपनाओगे बेशक

22 जनवरी, 2022