मजदूरों के लिए कोई लारी न आएगी
बस रेल जैसी कोई सवारी न आएगी
कुछ फ़ासला हो, हाथ मिलाएं नहीं कभी
कोरोना जैसी कोई बीमारी न आएगी
शमसान क़ब्रगाह के मंज़र तबाह हैं
मय्यत पे भी औलाद तुम्हारी न आएगी
सरकारी हिदायत में रहें एहतियात से
तो देखिएगा मौत की आरी न आएगी
महफूज़ घर में आप रहेंगे अगर ‘कँवल’
मैं मुतमईन हूँ आपकी बारी न आएगी
रमेश ‘कँवल’
17 मई,2020
यह समय कुछ खल रहा है (ग़ज़ल @लॉक डाउन)
श्वेतवर्ण प्रकाशन में प्रकाशित