उजाले बांटने फिर चल पड़े हैं
हमारे दर पे नाबीना खड़े हैं
ये परदे रेशमी तो हैं यक़ीनन
मेरे सपनों के इन में चीथड़े हैं
हवाए-ताज़गी ले आयेंगे हम
ये वादा कर गए जो ख़ुद सड़े हैं
क़लम सर कर दिया लाखों का जिसने
पढ़ा है हमने वो अकबर बड़े हैं
न मुँह पर मास्क न दूरी ज़रूरी
सभाओं में सियासतदां अड़े हैं
तरक्क़ी कर रहा है मुल्क अपना
हर एक सू मील के पत्थर गड़े हैं
मेरी महबूब है बाँहों में मेरी
‘कँवल’ नैना मेरे उन से लड़े हैं
नवरात्र कलश स्थापन
17 अक्तूबर, 2020
अभिनव प्रयास,अलीगढ़ जनवरी-मार्च 2021 अंक में पृष्ठ 17 पर प्रकाशित