• January 2, 2020

अपनों के दरमियान सलामत नहीं रहे

अपनों के दरमियान सलामत नहीं रहे

अपनों के दरमियान सलामत नहीं रहे 150 150 rorrimradmin

अपनों के दरमियान सलामत नहीं रहे
दीवार-ओ-दर मकान सलामत नहीं रहे

नफ़रत की गर्द जम्अ निगाहों में रह गई
उल्फ़त के क़द्र-दान सलामत नहीं रहे

रौशन हैं आरज़ू के बहुत ज़ख़्म आज भी
ज़ख़्मों के कुछ निशान सलामत नहीं रहे

ऐसा नहीं कि सिर्फ़ यक़ीं दर-ब-दर हुआ
दिल के कई गुमान सलामत नहीं रहे

महफ़ूज़ बाम-ओ-दर हैं सदाक़त के आज भी
धोके के पानदान सलामत नहीं रहे

अपनों से अपने लहजे में बातों का है कमाल
कुछ शख़्स बद-ज़बान सलामत नहीं रहे

वो लोग बे-अदब थे ‘कँवल’ बे-ख़ुलूस थे
हम जैसे बे-ज़बान सलामत नहीं रहे