गज़लें – Ramesh Kanwal https://rameshkanwal.com Mohabbaton Ka Shayar Thu, 20 May 2021 12:33:51 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.6.2 https://rameshkanwal.com/wp-content/uploads/2022/10/Orange_Round_Typography_Real_Estate_Monogram_Business_Logo-removebg-preview-3-100x100.png गज़लें – Ramesh Kanwal https://rameshkanwal.com 32 32 ग़ज़ल – रमेश ‘कँवल’ https://rameshkanwal.com/%e0%a5%9a%e0%a5%9b%e0%a4%b2-%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a4%81%e0%a4%b5%e0%a4%b2-4/ https://rameshkanwal.com/%e0%a5%9a%e0%a5%9b%e0%a4%b2-%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a4%81%e0%a4%b5%e0%a4%b2-4/#respond Thu, 20 May 2021 12:33:51 +0000 http://rameshkanwal.com/?p=2053 तुम्हारे लफ़्ज़ों को भावनाओं की पालकी में बिठा रहा हूँ

दिले- हज़ीं में मची है हलचल मैं आँसुओं को छुपा रहा हूँ

 

तुम्हारी पलकें झुकी हुई हैं तुम्हारे लब थरथरा रहे हैं

तुम्हारी ठोड़ी को उँगलियों से मैं धीरे धीरे उठा रहा हूँ

 

तुम्हारी ख़ातिर ही की बग़ावत तुम्हें शिकायत है क्यूँ ज़ियादा 

मैं भूल जाऊँ, न याद रक्खूँ, नसीहतें कब से पा रहा हूँ

 

बहुत दिनों की तलाश है ये जो रूबरू तुम हुए हो मुझसे

न दूसरा है कोई ज़मीं पर फ़लक की धड़कन सुना रहा हूँ

 

तुम्हें बना लूँ शरीके-जाँ मैं गुज़ारिशें कब से अंजुमन में

मैं कर रहा हूँ मगर इशारा तुम्हारा पुख्ता न  पा रहा हूँ

 

पुलिस या नर्सों का भेष धरकर सफाई कर्मी या डॉक्टर बन

इलाज करते हैं राम सीता हैं बंद मंदिर दिखा रहा हूँ

 

‘कँवल’ मेरी अहलिया की ख़िदमत रखे है घर में मुझे सलामत  

मैं लॉक डाउन की मस्तियों में लतीफ़ ग़ज़लें सुना रहा हूँ

 

रमेशकँवल

सृजन – 19 मई, 2020

2020 की नुमाइंदा ग़ज़लें : एनीबुक प्रकाशन : पृष्ठ 249  पर प्रकाशित

30 ग़ज़लगो 300 ग़ज़लें  : एनीबुक प्रकाशन  : पृष्ठ 125 पर प्रकाशित

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ग़ज़ल — रमेश कँवल https://rameshkanwal.com/%e0%a5%9a%e0%a5%9b%e0%a4%b2-%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a4%81%e0%a4%b5%e0%a4%b2-3/ https://rameshkanwal.com/%e0%a5%9a%e0%a5%9b%e0%a4%b2-%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a4%81%e0%a4%b5%e0%a4%b2-3/#respond Thu, 20 May 2021 12:32:31 +0000 http://rameshkanwal.com/?p=2051 तेरी यादों के दस्तावेज़ अल्बम से निकल आए

मेरी पलकों पे शबनम के दिए सौ बार मुस्काए

 

तमन्नाओं की बस्ती में अजब दहशत वबा की है

जो परदेशी है क्या खाए रहे घर में तो क्या खाए

 

कमाई बंद की मालिक ने घर से हो गए बेघर

चले जब लॉक डाउन में पुलिस ने डंडे बरसाए

 

न कोई ट्रेन, बस या ट्रक चले सब गाँव को पैदल

सियासत ने अजब ढॅंग से सज़ाएँ दीं ग़ज़ब ढाए

 

नगर में वन्य पशुओं के क़बीले सैर को निकले

घरों कमरों में वहशत खौफ़ के छतनार लहराए

 

हैं लटके चर्च, मंदिर,मस्जिद ओ गुरुद्वारे पे ताले

ख़फ़ा ईश्वर, गुरु, अल्लाह और यीशु नज़र आए

 

बदलकर रूप डॉक्टर नर्स थाने के जवानों का

मसीहा हॉस्पिटल में ये ख़ुद को सेवारत पाए

 

सभी गुरुद्वारों की है सेवाभावी रूप की शोहरत

ग़रीबों, दीन-दुखियों को ये गुरु लंगर बहुत भाए

 

लगे हैं मास्क चेहरों पर धुले हैं हाथ साबुन से

‘कँवल’ ने आज सैनीटाईजिंग के लाभ बतलाए

 

रमेश ‘कँवल’

सृजन – 15 मई,2020

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ग़ज़ल – रमेश कँवल https://rameshkanwal.com/%e0%a5%9a%e0%a5%9b%e0%a4%b2-%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a4%81%e0%a4%b5%e0%a4%b2-2/ https://rameshkanwal.com/%e0%a5%9a%e0%a5%9b%e0%a4%b2-%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a4%81%e0%a4%b5%e0%a4%b2-2/#respond Thu, 20 May 2021 12:31:17 +0000 http://rameshkanwal.com/?p=2049 बेटी पर सख्ती, बेटे को मस्ती के अधिकार मिले

नगर नगर कस्बों गाँवों को सीख में ये उपहार मिले

 

बालिग़ नाबालिग़ सब वहशी, तल्बा ज़ुल्म के मकतब के

औरत की अस्मत के लुटेरे बन के सरे-बाज़ार मिले 

 

बेटी बचाओ, बेटी पढाओ, बेटी बसाओ के नारे

झूठ फ़रेब के गाँवों  में  फुसलाने के किरदार मिले 

 

फ़ुर्सत के लम्हात मिले तो रूठ गया जादू तन का

इक बिस्तर पर दो जिस्मों के बीच में खर-पतवार मिले

 

पटरानी बन दुख पीड़ाएँ महल में क़ाबिज़ हो बैठीं

सुख़ आराम के दाई नौकर बाहर के हक़दार मिले

 

देख नहीं सकते जिसको कोहराम मचाया है उसने

उसके आगे फ़ेल मिसाइल, एटम बम, हथियार मिले

 

मजदूरों की रोटी-रोज़ी छिन गयी, भात मुहाल हुआ

पैदल,ट्रक या रेल के पहियों पर बेबस घरबार मिले

 

मौत का मीटर,खौफ़ की दहशत क़ाबू में आए न ‘कँवल’

डॉक्टर हों या नर्स पुलिस, गुमसुम जग के व्यापार मिले 

 

 

सृजन : 14 मई, 2020

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6 ग़ज़ल — रमेश कँवल https://rameshkanwal.com/6-%e0%a5%9a%e0%a5%9b%e0%a4%b2-%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a4%81%e0%a4%b5%e0%a4%b2/ https://rameshkanwal.com/6-%e0%a5%9a%e0%a5%9b%e0%a4%b2-%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a4%81%e0%a4%b5%e0%a4%b2/#respond Thu, 20 May 2021 12:29:50 +0000 http://rameshkanwal.com/?p=2047 दाल रोटी और दवाई के सिवा क्या चाहिए    

लॉक डाउन में मेरे भाई भला क्या चाहिए     

 

शर्ट टाई पैंट पहने कोई अब फ़ुर्सत कहाँ

अब नहाना खाना सोना है सखा क्या चाहिए

 

एक बिस्तर दो बदन माज़ी के ख्वाबे-दिलनशीं 

घर है, टीवी, फैन से बेहतर हवा क्या चाहिए

 

शाहराहों पर गली कूचों में बेहद शोर है

पागलों सी चीखती ज़ालिम क़ज़ा क्या चाहिए

 

घर में रहिये घर में ही महफूज़ है यह ज़िन्दगी 

घर से बाहर मौत है कहिये वबा क्या चाहिए 

 

औरतें छल बल से बेबस हो गईं  दालान में 

मर्द की मर्दानगी ख़ुश है  मज़ा क्या चाहिए

 

हमसे तो पूछी नहीं है खैरियत उसने कँवल 

आप से किसने कहा किसने कहा क्या चाहिए

 

रमेश कँवल

 

सृजन : 15 मई,2020

 

‘यह समय कुछ खल रहा है (ग़ज़ल @लॉक डाउन)’

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ग़ज़ल -रमेश ‘कँवल’ https://rameshkanwal.com/%e0%a5%9a%e0%a5%9b%e0%a4%b2-%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a4%81%e0%a4%b5%e0%a4%b2/ https://rameshkanwal.com/%e0%a5%9a%e0%a5%9b%e0%a4%b2-%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%b6-%e0%a4%95%e0%a4%81%e0%a4%b5%e0%a4%b2/#respond Thu, 20 May 2021 12:26:58 +0000 http://rameshkanwal.com/?p=2045 ज़हन की शाख पर ख्वाब फलते रहे

वो दरीचे पे दिल के टहलते रहे 

 

हमसफ़र बन के तुम साथ चलते रहे

देख कर ये जहाँ वाले जलते रहे

 

हौसलों के दिए रख हथेली पे हम

डगमगाए थे फिर भी संभलते रहे

 

बन के सूरज रहे हार मानी नहीं

रोज़ उभरते रहे ,रोज़ ढलते रहे

 

रूह को चैन फिर भी नहीं मिल सका

जिस्म की हम रिदाएँ बदलते रहे

 

तय नहीं कर सके क्या करें क्या नहीं

फ़ैसले हुक्मरानों के टलते रहे

 

अब सड़क पर ही आईन बनने लगा

सांसद देश के  हाथ मलते रहे

 

मुफ़लिसों को ‘कँवल’ घर नहीं मिल सका  

मौसमों सा ठिकाने बदलते रहे 

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नुक़रई उजाले पर सुरमई अंधेरा है https://rameshkanwal.com/%e0%a4%a8%e0%a5%81%e0%a4%95%e0%a4%bc%e0%a4%b0%e0%a4%88-%e0%a4%89%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%b8%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%88-%e0%a4%85%e0%a4%82%e0%a4%a7/ https://rameshkanwal.com/%e0%a4%a8%e0%a5%81%e0%a4%95%e0%a4%bc%e0%a4%b0%e0%a4%88-%e0%a4%89%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%b8%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%88-%e0%a4%85%e0%a4%82%e0%a4%a7/#respond Thu, 02 Jan 2020 06:09:53 +0000 http://rameshkanwal.com/%e0%a4%a8%e0%a5%81%e0%a4%95%e0%a4%bc%e0%a4%b0%e0%a4%88-%e0%a4%89%e0%a4%9c%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%b0-%e0%a4%b8%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%88-%e0%a4%85%e0%a4%82%e0%a4%a7/ नुक़रई उजाले पर सुरमई अंधेरा है
यानी मेरी क़िस्मत को गर्दिशों ने घेरा है

वक़्त ने जुदाई के ज़ख़्म भर दिए लेकिन
ज़ख़्म की कहानी भी वक़्त का ही फेरा है

टूटते बिखरते इन हौसलों को समझाओ
उलझनों की शाख़ों पर लज़्ज़तों का डेरा है

आने वाला सन्नाटा मस्तियाँ उड़ा देगा
नागिनो! सँभल जाओ सामने सपेरा है

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अपनों के दरमियान सलामत नहीं रहे https://rameshkanwal.com/%e0%a4%85%e0%a4%aa%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%a4-%e0%a4%a8%e0%a4%b9/ https://rameshkanwal.com/%e0%a4%85%e0%a4%aa%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%a4-%e0%a4%a8%e0%a4%b9/#respond Thu, 02 Jan 2020 06:05:31 +0000 http://rameshkanwal.com/%e0%a4%85%e0%a4%aa%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%b8%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%a4-%e0%a4%a8%e0%a4%b9/ अपनों के दरमियान सलामत नहीं रहे
दीवार-ओ-दर मकान सलामत नहीं रहे

नफ़रत की गर्द जम्अ निगाहों में रह गई
उल्फ़त के क़द्र-दान सलामत नहीं रहे

रौशन हैं आरज़ू के बहुत ज़ख़्म आज भी
ज़ख़्मों के कुछ निशान सलामत नहीं रहे

ऐसा नहीं कि सिर्फ़ यक़ीं दर-ब-दर हुआ
दिल के कई गुमान सलामत नहीं रहे

महफ़ूज़ बाम-ओ-दर हैं सदाक़त के आज भी
धोके के पानदान सलामत नहीं रहे

अपनों से अपने लहजे में बातों का है कमाल
कुछ शख़्स बद-ज़बान सलामत नहीं रहे

वो लोग बे-अदब थे ‘कँवल’ बे-ख़ुलूस थे
हम जैसे बे-ज़बान सलामत नहीं रहे

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ज़िंदगी इन दिनों उदास कहाँ https://rameshkanwal.com/%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%97%e0%a5%80-%e0%a4%87%e0%a4%a8-%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%89%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b8-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be/ https://rameshkanwal.com/%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%97%e0%a5%80-%e0%a4%87%e0%a4%a8-%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%89%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b8-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be/#respond Thu, 02 Jan 2020 06:01:46 +0000 http://rameshkanwal.com/%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%97%e0%a5%80-%e0%a4%87%e0%a4%a8-%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%a8%e0%a5%8b%e0%a4%82-%e0%a4%89%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a4%b8-%e0%a4%95%e0%a4%b9%e0%a4%be/ ज़िंदगी इन दिनों उदास कहाँ
तुझ से मिलने की दिल में आस कहाँ

मौसमों में गुलों की बास कहाँ
मुफ़्लिसी मेरी ख़ुश-लिबास कहाँ

लॉन से फूल पतियाँ ओझल
तेरी यादों की नर्म घास कहाँ

रतजगा फूल तारे चाँद हुआ
नींद बिस्तर के आस-पास कहाँ

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